संदीपन

25 मार्च 2015

प्रश्न : संन्यास लेने पर मनुष्य क्या dull (सुस्त) हो जाता है?

श्रीश्रीठाकुर : यथार्थ सन्यासी होने पर dull  (सुस्त) कैसे होगा?  सन्यासी का अर्थ होता है इष्ट के प्रति सम्यक भाव से न्यस्त होना.  ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास जीवन के ये ही  चार आश्रम हैं.  संन्यास है चरम. पहले आश्रम- पारम्पर्यहीन संन्यास नहीं था.  शंकराचार्य और बुद्धदेव से या सब आये हैं.  अशोक के समय में तथाकथित संन्यास से अधोगति आरम्भ हुई.  उपयुक्त पात्र के अभाव में तभी से प्रतिलोम का सूत्रपात हुआ.  हिन्दू समाज में लोग स्वाभाविक रूप से संन्यास के पथ पर अग्रसर होते थे.  जिनसे संभव नहीं होता, उनकी बात भिन्न है.  और भी थे नैतिक ब्रह्मचारी.  वे लोग विवाह नहीं करते थे.  उनका समावर्तन नहीं होता था, आजन्म गुरुगृह में रहकर गुरुसेवा व लोकसेवा करते थे.
-आलोचना प्रसंग 

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