संदीपन

25 मार्च 2015

निःवीर्यता धर्म नहीं

तेजस्विता रहने पर दस घंटा का काम एक घंटा में किया जा सकता है। दस लोगों का काम एक व्यक्ति कर सकता है। मुझे यह देखने की इच्छा होती है कि असंभव को सम्भव कैसे किया जा सकता है। यह है मेरे जीवन का खेल। तुमलोगों में यदि ऐसी तेजस्विता देखता हूँ तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है।
बस एक बार में काम ख़त्म कर डालो, negativism (नेतिवाचक भाव) धूरिसात हो जाये। जैसे भी हो काम करना है। हमारा mood (मनोभाव) ऐसा होना चाहिए कि चाहे कितना भी बाधा-बिघ्न, दुःख-कष्ट, अभाव-असुविधा का सामना क्यों न करना पड़े, उसे दृड़ होकर fightout हम निश्चित रूप से करेंगे ही। बचने-बढ़ने में जो बाधक है उसे नाश कर परिवार, परिवेश सहित जीवन और वृद्धि के पथ पर आगे बढ़ना ही धर्म है। निःवीर्यता धर्म नहीं है। जीवन की तपस्या ही है बाधाओं को अतिक्रम कर अमृत पथ पर अग्रसर होना। इसीलिए धर्म के साथ अज्ञता, दारिद्र्य, स्वार्थान्धता, रोग, व्याधि, असाफल्य, आलस्य, दुर्बलता और प्रवृति, अभिभूति की कोई संगति नहीं।
--: श्री श्री ठाकुरआलोचना प्रसंग, चतुर्थ खंड , पृ. सं.- 86

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