संदीपन

8 अग॰ 2019

स्वामी के आदर्श च्युति में ही स्वामी वास्तविक रूप में पतित होते हैं :- और, स्वामी के पतित होने से बढ़कर स्त्री की अमर्यादा और क्या हो सकती है? ऐसे पातित्व से पतित्व का भी अपलाप होता है;- लक्ष्य में अटूट रहकर स्वामी को लक्ष्य में उठाओ. !!११६!! नारी निति (श्री श्री ठाकुर)



किसी उच्च आदर्श में युक्त हुए बिना किसी भी मनुष्य का अपने व्यक्तित्व में चारित्रिक सुदृढ़ता लाना अत्यंत कठिन है क्योकि आदर्श विहीन व्यक्ति बहुत महान हो सकता है, बुद्धिमान और धनवान हो सकता है परन्तु कई क्षेत्र में उसका आत्मबल दुर्बल साबित होता है, जिसके फलस्वरूप विपरीत परिस्थितियों में कई बार उसका आत्म संयम टूट जाता है, चुकि हर मनुष्य के जीवन में अनेकानेक असंभावनाए घेरे रहती है ऐसे समय में वह मनुष्य कई बार चारित्रिक दुर्बलता का शिकार हो जाता है. अतः श्री श्री ठाकुर की विचार धारा में नारी ही अपने पति के सर्वांगीन विकास की मुख्य आधार है, कारण चाहे जो रहे पुरुष के चारित्रिक ह्रास के साथ ही उसकी पत्नी की स्व्मार्यादा पर भी आघात पहुंचता है. इसलिए श्री श्री ठाकुर ने नारी निति के माध्यम से उपरोक्त पंक्तियों द्वारा सम्पूर्ण नारी समाज को उसका दायित्व समझा रहे हैं  कि वे स्वयं अपने जीवन के वास्तविक प्रयोजन को समझें अपने लक्ष्य को जानें और पूर्ण निष्ठा द्वारा उनका अनुसरण करें फिर अपने उच्च चरित्र व सदव्यव्हार द्वारा अपने स्वामी को निरंतर उस लक्ष्य में उठती रहें.
इसके लिए सबसे पहले यह जानने की परम आवश्यकता है कि वह लक्ष्य क्या है ?
कोई भी मनुष्य अपने जीवन में चाहे जितनी ही सामाजिक, आर्थिक, भौतिक उन्नति करले तब भी उसका अंतिम लक्ष्य इश्वर प्राप्ति ही है, इस लक्ष्य के अभाव में मनुष्य की प्रगति एक समय पर आकर विछिन्न साबित होती है, इश्वर प्राप्ति का सही अर्थ है अपनी आत्म सत्ता में उस परम सत्ता का प्रति क्षण बोध रहना, उस बोध द्वारा ही द्वेत भाव का अभाव हो सकता है.
उच्च आदर्श को अपने जीवन में स्थापित करके ही मनुष्य चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अपने चरित्रबल को उच्च मर्यादित व अटूट रख सकता है. क्योकि आदर्श हीन जीवन बिना पतवार की नाव की तरह होता है.
आदर्श भी कौन ? जो सम्पूर्ण प्राणिमात्र के मंगल करी व परम सहिष्णु हों, विश्व ब्रह्माण्ड की शक्ति जिनमें चलायमान हो और हमारे सामने प्रत्यक्ष हों. क्योंकि जिवंत आदर्श पाकर ही मनुष्य जिव से शिव बन सकता है :


अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली, उन गुरु (आदर्श) को नमस्कार ।
नारी शक्ति महान शक्ति है. कोई भी नारी अगर अपने नारीत्व को जागृत करती है तो उसकी क्षमता सामान्य नहीं है वह चाहे पढ़ी लिखी हो या कम पढ़ी लिखी उसका चारित्रिक बल ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है, अपने चारित्रिक बल के आधार पर वह स्वयं अपने स्वामी के चरित्र की रक्षा करने में सर्व समर्थ है.इसके लिए नारी को स्वयं उच्च आदर्श में युक्त रहकर अपने स्वामी को भी उस महान लक्ष्य में अवस्थित करने का प्राणपण से चेष्टा करना चाहिए.


-पुष्पा बजाज 

20 जून 2018

। । परमानन्द परमानन्द । ।



 

।। सांझ सवेरे मैं पुकारू।।

 

श्वास श्वास से मैं पुकारू केवल तेरो नाम प्रभु।

केवल तेरो नाम प्रभुवर केवल तेरो नाम प्रभु।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

रोम रोम में बसने वाले. जन जन के तुम प्राण हो।

जिसका न कोई संगी साथी उसके तुम भगवान हो।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

दीन दुखी के पालन हारे. सकल लोक के श्याम हो।

भटके हुए को राह दिखाते. हरते सबका त्राण हो।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

कण कण में बसने वाले. सबके प्रभु तुम राम हो।

पारब्रह्य परमेश्वर हो. प्रभु पुरूषोत्तम आप हो।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

।। छवि तुम्हारी अजब निराली ।।

 

दया तुम्हारी सबसे न्यारी ठाकुर सबके दाता हो।

ज्ञान ध्यान की बात नहीं पर ध्यान ध्येय और ध्याता हो।।

 

कभी लगाते मोर मुकुट तुम कभी धनुष उठाते हो।

अबकी बेर तुम ऐसे आए. भक्ति भाव जगाते हो।।

 

नैनों से बसती दया प्रेम की. प्रेम से सबही बंधाए हैं।

प््रोम का दीप ऐसा जलाया. घर घर भए उजियारे हैं।।

 

बनती बिगडी भाग्य की रेखा. दया ऐसी बरसाते हो।

दया प्रेम की लुटाकर प्रभुवर. भव से पार लगाते हो।।र्र्र्र्र्र्

 

 

 

।। कैसी ठाकुर राह दिखाई ।।

 

कैसी ठाकुर राह दिखाई

पडी भंवर में नैया पडी भंवर में नैया पार लगाई।

 

समता आई ममता पाई घर घर में सुख शान्ति छाई।

कैसी प्रभु जी तुने कैसी प्रभु जी तुने ज्योत जगाई।।

 

शान्ति के दाता भाग्य विधाता और नहीं अब कुछ भी भाता।

तेरी बतिया प्रभु तेरी बतिया प्रभु मेरे मन भाई।।

 

सबके मन में आशा भरते सबही अमंगल दूर कर देते।

जन जन पुकारे तुझे हे जग के सांई।।

 

तेरी दया से जग हरसाता दीप किसी का बुझ नहीं पाता।

तेरे रज से प्रभु तेरे रज से प्रभु धरा मुसकाई।।

 

।। ठाकुर की महिमा अपरम्पार।।

 

ठाकुर की महिमा अपरम्पार ठाकुर की जयजयकार करो।

ठाकुर हैं जग आधार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो

 

ठाकुर ने सतनाम जगाया सतनाम का ऐसा मर्म बताया।

नाम से होगा बेडा पार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो

 

जन जन में सतनाम जगाते सबकी विपदा दूर भगाते।

नाम ठसे करते उद्धार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो।

 

सब मिलकर ठाकुर को ध्याओ सतनाम की धून जगाओ।

नाम से करलो नैया पार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो।

 

।। मीठी वाणी रे।।

 

मीठी वाणी रे ठाकुर जी की मीठी वाणी रे।

सब मिल बोलो रे भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

जग उद्धारक  हैं ठाकुर जी जग के पालक हैं।

सबके प्रतिपालक हैं भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

राह दिखाते हैं वे सबकी बिगडी बनाते हैं।

वे सबको पार लगाते हैं भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

छवि निराली है अद्भूत बात निराली है।

करते रखवाली हैं भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

द्वार पर आओ रे ठाकुर की शरण में आओ रे

प्रभु के चरण पखारो रे भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

आए कुल स्वामी रे सबके हितकामी रे।

हैं निष्कामी रे भक्तजन मिल सब बोलो रे।र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

 

।। करलो प्रणाम ठाकुर।।

 

करलो प्रणाम ठाकुर जग के आधार हैं

उनकी दया से होता सबका बेडा पार है

 

नाम की महिमा सबमें जगाते  नाम से सारी बात बनाते।

बडी अनोखी लीला रचाते जल तल नभ में कोई समझ नहीं पाते।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

 

ऋद्धि सिद्धि सब द्वार तिहारे हाथ जोड कर तोहे पुकारे।

सब देवों का आपमें वास है भक्तों के वश में रहते आप हैं।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

 

सबकी नैया पार लगैया रूप तिहारा जैसे कृष्ण कन्हैया।

भक्त खडे मिल करते पुकार हैं तोरी दया की बस एक चाह है।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

 

ठाकुर नाम का भर भर प्याला जो पीवे हो जाए निहाला।

पुरूषोत्तम प्रभु दीन दयाला शरण में आए होए निहाला।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

।। ठाकुर जी की बात ।।

 

ठाकुर जी की बात ठाकुर जी की बात सारे जग को सुहाती है।

सबका दुखडा मिटाती है ठाकुर जी की बात

 

आर्त दुखी जन सारे आए तिहारे द्वारे दया की आस लिए।

द्वार से खाली हाथ कोई नहीं जाता सबकी सुद्ध लिए।।

पे्रम से उनकी प्रेम से उनकी जो ज्योत जगाते हैं।

उनका दुख वे मिटाते हैं ठाकुर जी की बात।।

 

सुन प्रेम की वाणी आए जो संत ज्ञानी सबको साथ लिए।

सत्य जगाने को सद्भाव जगाने को जतन सब आप किए।।

भक्ति भाव के साथ भक्ति भाव के साथ जो दर पर आते हैं।

उनकी आस पुराते हैं ठाकुर जी की बात।।

 

सभी को बचाने को सभी को बढाने को सतनाम जगाते हैं।

सतनाम की महिमा सतनाम की गरिमा सबको बताते हैं।।

दीक्षा के माध्यम से  दीक्षा के माध्यम से जग सुन्दर बनाते हैं।

सतनाम दिलाते हैं ठाकुर जी की बात।।

र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

 

 

।। जगदीश्वर तेरे नाथ।।

 

जगदीश्वर हैं प्रभु पुरूषोत्तम हरि हरि बोल

हरि हरि बोल बन्दे  हरि हरि बोल

 

पुरूषोत्तम को जो ध्यावे उसका जनम सफल हो जावे।

उसके बन जाते सब काम बन्दे हरि हरि बोल।।

 

पुरूषोत्तम के दर जो आवे उसके दोष मिट जावे सारे।

उसके कर्म होते निष्काम बन्दे बोल हरि हरि।।

 

सतनाम की महिमा जो गावे भाव अनुठा पावे।

मिलता श्री चरणों में स्थान बन्दे बोल हरि हरि।।

र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

।।शान्ति के दाता परम विधाता।।

 

शान्ति के दाता परम विधाता महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।

ले लेना ठाकुर ले लेना शरण में मुझकोे ले लेना।।

 

सबके काज संवारते सबका मंगल करते हो।

सब जन मिल पुकारते विपदा सबकी हरते हो।।

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

 

स्वरूप तुम्हारा अति सुन्दर मन भावन अति प्यारा है।

जो कोई दर पर आया तेरे करूणा तेरी पाया है।

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

 

श्वास श्वास में तेरा नाम प्रभु मुझमेें समा जाए।

ऐसी दया करो प्रभु सतनाम की शक्ति जग जाए।।

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

 

पुरूषोत्तम प्रभु जगपालक सृष्टि के पालनहार हो

जगतपिता जगपालक हो सृष्टि के सृजनहार हो

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

।। तोहे सुमिरकर ठाकुर।।

 

तोहे सुमिरकर ठाकुर मैं तर जाऊं

तेरे चरणों की भक्ति पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं

 

जग के आधार तुम जग के पालनहार हो।

मेरी नैया डगमग डोले तुम्ही खेवनहार हो।

तेरे चरणों में ठाकुर शरण पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं।।

 

नजर जब उठाते प्रभु करूणा बरसाते हो।

लाखों लाखों लोंगो की विपदा मिटाते हो।

तेरे चरणों में ठाकुर शक्ति पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं।।

 

जग से हारा मैं तो शरण तेरी आया हूं।

द्वार पर तेरे आकर बहुत शान्ति पाया हूं।

तेरे चरणों में ठाकुर सुख पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं।।

र्र्र्र्र्र्र्र्

 

 

 

।। ठाकुर तेरे दर्शन की।।

 

ठाकुर तेरे दर्शन की ठाकुर तेरे दर्शन की।

मुझे चाह अति भारी ठाकुर तेरे दर्शन की।।

ठाकुर तेरे दर्शन की

 

मैं कैसे दूर रहुं तेरी याद सताती है।

मैं जितना नाम करूं तेरी चाह बढ जाती है।।

तेरा रूप जो दिख जाए तेरा दरश जो मिल जाए।

मेरा मन ये खिल जाए।।

ठाकुर तोरे दर्शन की

 

तेरी सुन्दर वाणी को मैं जितना मनन करूं।

मन नहीं अघाता है मैं जितना जतन करूं।।

तु सामने हो मेरे तु सामने हो मेरे।

मेरा मन हरख जाए।।

ठाकुर तोरे दर्शन की

 

मेरे पास में आना प्रभु मुझे बिसर मत जाना प्रभु।

मुझे अपना बनाना प्रभु मुझे भूल न जाना प्रभु।।

तु बिसर गया मुझको गर भूल गया मुझको।

तो मैं ना सम्भल पाऊं।।

ठाकुर तोरे दर्शन की

 

।।मनवा प््राभु आए तेरे द्वार।।

 

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार. मनवा प््राभु आए तेरे द्वार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

मन की पीडा धर चरणों में. सुनेंगे बारम्बार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

जिस जीवन को दिया प््राभु ने. आए उसको सम्भाल।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

जप तप साधन कुछ भी न मांगे. मांगें केवल प्यार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

जीवन पथ को रौशन करले. मौका मिला इस बार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

 

 

 

 

।। अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ ।।

 

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ प्रभू बार बार अभिनन्दनॐ

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ

 

प्रभू जबसे तुमको पायाॐ तब हटा तम का सायाॐ

करूं हर पल वन्दनॐ प्रभू बार बार अभिनन्दनॐ ॐ

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ

 

पूजा की विधि ना जानूं. ॐ मैं सेवा की विधि ना जानूं।

जग बना शीतल चन्दनॐ प्रभू बार बार अभिनन्दनॐ ॐ

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ

 

 

 

।।प्रभू कैसी प्रीत जगाई।।

 

अंतर के तम दूर हुए और. विरह की अग्नि समाई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

 

मन ये मेरा तुझे पुकारे और न कछु अब भाई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

 

निश दिन तेरी बाट निहारूं. कब आओगे कन्हाई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

 

नैन बिछाए कबसे खडा हूं. कब आवोगे सांई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

।।प्रभु पुरूषोत्तम।।

 

नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो

प्रभु पुरूषोत्तम अनुकुलाय आदिदेवाय नमो

नमो नमो नमो नमो

 

अनन्तरूपाय अतीन्द्रियाय अव्यक्त रूपाय नमो

अद्भुताय अधृताय अर्चिताय नमो नमो

नमो नमो नमो नमो

 

अनन्ताय आदित्याय अमृताय नमो

अव्ययाय अचिन्त्याय अव्यक्ताय नमो

नमो नमो नमो नमो

 

अनुत्तमाय अमृतपाय अधिष्ठानाय नमो

अच्युताय अनिरूद्धाय अक्षराय नमो

नमो नमो नमो नमो


।।अन्तर के अंधियारे में।।

 

अन्तर के अंधियारे में किसने

ज्योति जलाई।

तमश भरे जीवन पथ पर

सजल चांदनी छाई।।

 

जलचर नभचर सुप्त हुए हैं

निश्चेत गगन है सारा।

मौन स्वर से पुकार रहा है

अशंक अभीक अपारा।।

 

परम पुरूष के आगमन से

गगन हिंडोले खाए।

प्राणों के उनके पावन स्पर्श से

जल न जलधि समाए।।

 

विरह वेदना दूर हुई है

मही आज हरिआई।

घट घट में घनश्याम जगे हैं

चहुं ओर शांति आई।।

 

 

।।महानाद के महाशिखर पर ।।

 

महानाद के महाशिखर पर बैठो मेरो नन्दलाल।

सखीरी जाती तू किस पाल

 

महाजाल में उलझ रह्यो है मन न होय संभार।

चित्तचोर वो नन्द को लालो ले लियो सो भार।।

 

जग की माया खींच सके ना देख रह्यो मुस्काय।

तरूवर सरूवर सब मं बसोे है जग को खेवनहार।।

 

वेदकर गंगधर शशीधर नदीधर आए जगदाधार।

रैन दिवस कर उनके हवाले इहलोक से होजा पार।

 

 

।।सर्वेश्वराय सुदर्शनाय।।

 

सर्वेश्वराय सुदर्शनाय सर्वहिताय प्रभु आप।

शरण में लो आप मोहे शरण में लो आप।।

 

कृष्णाय केशवाय कारणाय प्रभु आप।

कामप्रदाय कृतागमाय कृताकृताय प्रभु आप।

 

गोहिताय गोबिन्दाय गरूड़ध्वजाय प्रभु आप।

गदाधराय गहनाय गरूतमाय प्रभु आप।।

 

माधवाय महीधराय मुकुन्दाय प्रभु आप।

महाधनाय मनोहराय महाभाग्य प्रभु आप।।

 

वासुदेवाय वारूणाय वासवानुजाय प्रभु आप।

विदारणाय विस्तराय अनुकुलाय प्रभु आप ।।

 

।।आदिकारण हे जगतारण।।

 

आदिकारण हे जगतारण ठाकुर मेरे नाथ।

मेटो भ्रम हे नाथ प्रभुॐ किस विध होऊं सनाथ।।

 

पार न पाऊं भव बंधन कोरोक न पाऊं विघात।

सांकर मेरे पग में बंधी है कैसे होऊं अदास।।

 

धधक रही है जग की ज्वाला चैन नहीं कोई भांत।

पथ तो दिखे चल नहीं पाऊं बल बुद्धि नहीं परमात।।

 

दीनबन्धु दीनों के स्वामी सगरे जगत के आधार।

जीव जगत और सर्व भुवन में और न कोई कर्तार।।

विघातः नाश सांकरः जंजीर अदासः स्वतंत्र परमातः परमात्मा

कर्तारः करतार

 

 !!परमानन्द परमानन्द!!

परमानन्द परमानन्द परमानन्द पुरूषोत्तम
शून्य हो या शून्यविज्ञ हो विश्वभावन पुरूषोत्तम
वेद हो या वेदविज्ञ ब्रह्य हो पुरूषोत्तम
अनल हक जो ध्यानी कहते आदिकारण पुरूषोत्तम
तत्व हो या तत्वविज्ञ पूर्ण हो पुरूषोत्तम
सत्य पथ पर चल सकूं जगनिवास पुरूषोत्तम
अमित अगाध हो या अनन्त असंख हो पुरूषोत्तम
विश्वव्यापी चेतना का अप्रमाण हो पुरूषोत्तम

-पुष्पा बजाज, शिलोंग.