संदीपन

15 जुल॰ 2013

मनुष्य को शांति कैसे मिल सकती है ?

शांति मानो विश्राम !
कारण : 

मनुष्य एक प्राकृत प्राणी है .  उसके जीवन में स्वाभाविक रूप से   समृद्ध होने की  इच्छा  विधमान रहती है.
परन्तु  मनुष्य जिस जगत में रहता है वहां का वातावरण घर, परिवार, मित्र, स्कूल, समाज के  माध्यम से  शिक्षा के साथ साथ अन्य अनावश्यक प्रवृतियाँ  उसपर शाषण करने लग जाती  है.

जिसका  गलत प्रभाव उसके प्रकृत स्वभाव पर पड़ता है .  प्रकृत रूप से अपने को समृद्ध करने के उसके  पथ पर बहुत सी अनावश्यक बढ़ाएं  आ जाती है.

 अपनी स्वभाविक प्रकृति के प्रतिकूल वह ऐसी  आदतों को आदि हो जाता  है जो उसकी जन्मजात प्रकृति में थी ही नहीं जिसके कारण उसका प्रकृत रूप से समृद्ध होने का  मार्ग अवरूध हो जाता है.

 जिस के फलस्वरूप उसका आन्तरिक उथान रूक जाता है, उसका चित  अशांत हो जाता है .   

निवारण  :

जो लोग  वास्तविक  रूप से जो शांति चाहते हैं उनके लिए आवश्यक है वातावरण वश उन्हें चाहे जैसे रहना पड़े पर  चित से वे एक आदर्श (आइडियल गुरु) का अनुशरण करें. और उनके प्रति अटूट निष्ठा रखते हुए उन्हें समृद्ध बनाकर चलने का स्वभाव ग्रहण करें.  इससे उनकी अपनी  स्वाभाविक प्रकृति का प्रकृत उथान होगा और उनके आतंरिक व बहरी समृधि का पथ भी स्वाभाविक रूप से खुल  पायेगा.

उसके आन्तरिक  बाहरी  जीवन में शांति तो आयेगी ही एक दिन ऐसा आयेगा की वह दूसरों की शांति का कारण भी बन जायेगा.



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