संदीपन

16 जुल॰ 2013

आदर्श बिना शिक्षा ?


आज शिक्षित लोंगो की कमी नहीं है कमी है तो शिक्षा   के साथ उसके अन्दर की पात्रता की!
मनुष्य के अन्दर उसकी पात्रता की वृद्धि हो इसका एक मात्र उपाय  है  : आदर्श

आदर्श के बिना मनुष्य वैसा ही है जैसा आत्मा बिना शरीर .


आदर्श क्या हैं ?

आदर्श हमारे  प्राण हैं.  जैसे प्राण बिना जीवन का कोई महत्व नहीं वैसे ही आदर्श प्राप्ति  बिना   जीवन का कोई महत्व नहीं.

हमारे समाज में आदर्श  का बड़ा ही मनमाना अर्थ निकल लिया गया है जैसे एक गुरु मिल जाये कान में मंत्र दे, दे, पूजा पाठ की तरकीब सिखादे. हम उनके चरण धोएं, उनकी फोटो पर माला चढ़ाएं, अपना दुखरा सुनाएँ.
 वे आत्मा परमात्मा की बात बताये...........और हमारा कल्याण हो जाये........
वास्तविक    जगत में ऐसा होता नहीं है.
आदर्श का अर्थ गुरु!
अवश्य है पर गुरु का अर्थ है
गु - अंधकार
रु - प्रकाश

अगर आपने  अपने जीवन में सच्चा आदर्श ग्रहण किया है तो यह बोध भी किया होगा जीवन की बड़ी से बड़ी विषम परिस्थिति में भी आपको कभी अपने गुरु के सम्मुख जाकर कहना नहीं पड़ा होगा : मैं क्या करूं?

सच्चा आदर्श केवल वही  है जो हमारे जीवन के प्रत्येक विपरीत  समय में स्वयं प्रकाश बनकर हमारी बुधि,
हमारे सामर्थ्य, हमारे धर्य में सम्माहित हो जाता है और हर कठिनाई और विपदा से सहज रूप से बाहर ले आता है.

बात केवल कठिनाई और विपदा की ही नहीं है सच्चा आदर्श  मिल जाये तो हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण उत्क्रिस्ट हो उठता है . हमरे प्रत्येक कर्तब्य चाहे वे शिक्षा के हों, राजनीती के हों,  व्यापर के हों या गृहस्थी के  ही क्यों न हो सब क्षेत्र सार्थक हो उठते हैं.


जय गुरु !



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