नारी के अपने नित जीवन में आवश्यक नियमों का पालन नहीं करने से उसके मानसिक स्तर का. उसकी बोध शक्ति का आवश्यक विकास नहीं हो पाता।
जिसके फल स्वरूप बहुधा देखा जाता है कि अच्छे भाव और स्वभाव वाली नारी द्वारा भी कई बार ऐसा निर्णय ले लिया जाता है जिसका दुःष्परिणाम पूरे परिवार को उठाना पडता है।
अतः प्रत्येक नारी को अपने चरित्रगत गुणों को प्रकृत रूप से विकसित करने के लिए प्रतिदिन सतनाम के साथ साथ. यजन–याजन–ईष्टभृति के विधान चलना आवश्यक है।
पुरूषोत्तम प्रभू श्री श्री ठाकुर ने कहाः “इस मंगल पथ चलते हुए. अगर तुम भूलकर भी अमंगल पथ पर चले गए. तो प्रकृति तुम्हारी रक्षा करेगी।समय रहते ही तुम लौट आओगे।”
यजन–याजन–ईष्टभृति के विधान का पालन करने से जीवन में आने वाली. प्रत्येक अनुकूर्लप्रतिकूल परिस्थितियों में. अपना दृष्टिकोण सकरात्मक रहता है।
अपनी जिम्मेवारियों के प्रति निष्ठा भाव प्रकृत रूप से स्वभावगत हो जाता है।
जिसके कारण परिवार की उन्नति. यश. वृद्धि स्वभाविक रूप से विकसित होती रहती है।अलग से प्रयास नहीं करने पडते।
पुरूषोत्तम प्रभू श्री श्री ठाकुर ने कहा हैः नारी के बैशिष्ट्य में है निष्ठा। धर्म। प्रेरणा………।”
नारी जाति के लिए अपने जन्मजात सुप्त गुणों को पूनः जागृत करने के लिए. यजर्नयाजन के विधान को और भी समृद्ध करना होगा।
यजर्नयाजर्नइष्टभृति के पथ पर चलकर स्वभाविकतः ही. अपने कर्तब्यों के प्रति आत्मबोध जागृत होने लगता है।
नारी जाति यदि यजन–याजन–ईष्टभृति के विधान पर सही रूप से चल पाए. तो निश्चय ही उसकी सोच. उसके नजरिये में एक उंच बदलाव आएगा. जिसके माध्यम से उसका परिवार. परिवार के प्रति व्यक्ति. मित्र. परिवेश. पारीपाश्रर््िवक के जीवन में सुर्ख समृद्र्धि स्वास्थ एवं उन्नति को आने से कोई रोक नहीं सकता।
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