संदीपन

25 दिस॰ 2010

श्री श्री ठाकुर ही वह कारण पुरूष

आज का मानव ज्ञान तो चाहता है पर भाषा या प्रवचन में नहीं. प्रयोग व व्यवहार में. सटिकता के साथ।
आज का मानव अपने जीवन में उपलब्धियां प्राप्त करना चाहता है पर वह अन्धविश्वासी बनकर नहीं कर्मकुशलता के साथ।
आज का मानव बचना और बढ़ना चाहता है पर दुर्बल बनकर नहीं वीरता और साहस के साथ।
आज के मानव को आवश्यकता है श्री श्री ठाकुर की उनकी प्रेरणा की क्योंकि श्री श्री ठाकुर ही वह कारण पुरूष हैं जो प्रत्येक मनुष्य के हीत की बात जानते हैं।
वे यह भी जानते हैं मनुष्य की सफलता का सही और सुगम रास्ता क्या है।ऐसा वह कौन सा रास्ता है जिस पर चलकर आज का मानव बगैर किसी दिखावा के बगैर किसी अन्धविश्वास के बगैर किसी बाहरी संसाधन के आत्म सम्मान के साथ. सफलता पूर्वक़ एक गौरवशाली जीवन यापन कर सके।

श्री श्री ठाकुर ने कहा है : कारण में ही निवारण विद्यमान है।
          साधारणताः हम देखते हैं कि एक आम आदमी अपने जीवन में पूरी इमानदारी व श्रद्धा के साथ मेहनत करता है. पर सफल नहीं हो पाता। इसका कारण क्या है?
यहीं पर श्री श्री ठाकुर की दया से हम यह जान पाते हैं. असफलता में ही सफलता का कारण विद्यमान है। थोड़ा सतनाम करने से. आचार्य का संग करने से उनकी आज्ञा में रहने से. विवेक अपने आप प्रखर होता है कि अपनी असफलताएं स्वभाविकताः ही सफलता में बदल जाती है।

श्री श्री ठाकुर ने कहा है : सर्वप्रथम हमें दुर्बलता के विरूद्ध युद्ध करना होगा।
    समझना होगा कि जब ठाकुर कह रहे हैं दुर्बलता के विरूद्ध युद्ध करना होगा तो यह दुर्बलता है क्या जिसके विरूद्ध युद्ध करने की बात ठाकुर कह रहे हैं।और वह दुर्बलता है अपने आपको भूल जाना कि हम कौन हैं।आज के युग में हमने चाहे जितनी तरक्की करली हो पर यह भी सच है कि हमने अपने प्रति अपनी निष्ठा को गंवाया है।ठाकुर यहां युद्ध करने की बात कर रहे हैं तो हमें यह भी जानना होगा कि यह युद्ध जो हमें करना है वह किसके साथ है और जिसके साथ हम युद्ध करने जा रहे हैं वह हमारे अपने अन्दर विद्यमान स्वयं हमारी अपनी दुर्बलता है।
और इस दुर्बलता का राज हमारे मन पर चलता है. मन के द्वारा यह हमारे स्वभाव व आवश्यक कर्मों पर असर डालती है. जिससे धीरे धीरे असफलता पराजय का डर हम पर हावी होने लगता है।
श्री श्री ठाकुर दयाल हैं. वे सम्पूर्ण जीव मात्र के हितैषी हैं वे नहीं चाहते कि कोई भी मनुष्य हार का जीवन यापन करे।वे हमारे मन की प्रत्येक अवस्था व प्रत्येक गति को जानते हैं. वे जानते हैं हमारे हार का कारण क्या है।वे जानते हैं कि आज मनुष्य का जीवन जो अवसाद निराशा से बोझिल है उसका कारण है : दुर्बलता।
और वे यह भी जानते हैं परिस्थिति परिवेश से लड़ता हुआ एक आम आदमी जब अपने जीवन में आए असफलता के दौड़ से निकल नहीं पाता. तो ऐसे विषम राह से निकाल कर उसे किस तरह सफलताओं की मंजिल मिल सकती है।और वह रास्ता है केवल प्रेम।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

जय गुरु!!

इस बार श्री श्री ठाकुर के आश्रम देवघर जाना न हो पाया. पिछली बार बड़े दा से मुलाकात हो गई थी.

अब देखते हैं कब जाना हो पाता है.