जब तक हमारे समाज की डोर रिसी मुनियों के हाथो थी हमारे समाज का ढांचा संतुलित था .
क्योंकि हमारे ऋषि मुनिगण वैज्ञानिक थे अनेकों अनुसन्धान करके उन्होंने मानव जाति के उत्थान व् सामाजिक एकीकरण के हित कुछ नियम बनाया थे.
उन नियमों के पालन से पूरा समाज संतुलित रहता था.
पर आज हमारा समाज है आचार्य विहीन है.
वेद में कहा गया है : हम सबका मंत्र एक हो हम सबका आचार्य एक हो हम सबके मन एक हों
हमें यह देखना होगा वर्तमान समय में ऐसा कौन सा मंत्र ऐसे कौन आचार्य है जो हम सबको सामान रूप से लेकर चल रहे हैं.
क्योंकि इतिहास गवाह है भारत वर्ष जब जब विश्व गुरु के पद पर पदासीन हुआ तब तब भारत वर्ष में आचरण सिद्ध आचार्य समाज व रास्ट्र के संचालक थे.
आचरण सिद्ध आचार्य के संभावित नेतृत्व से ही भारत वर्ष का नैतिक उत्थान संभव है.
क्या हमने सोचा है इसका मुख्य कारण क्या है ?
उसका मुख्य कारण है भारत वासियों ने ऋषियों को छोरकर रिसिवाद की उपासना प्रारभ की है .
जिसके फलस्वरूप हमने सहजात गुणों को भुलाया है.
इस सृष्टि में जितनी भी स्थूल सूक्ष्म शक्तियां है उन सबमें अपना अपना गुण विद्यमान है।
उन गुणों के आधार पर ही उनकी पहचान है।
जैसे अग्नि जल वायु पृथ्वी आकाश इन सबकी अनी अपनी गुणवत्ता है।
जैसे : अग्नि इसकी गुणवत्ता है ताप
जल इसकी गुणवत्ता है शीतलता
वायु इसकी गुणवत्ता है श्वास
पृथ्वी इसकी गुणवत्ता है धैर्य
आकाश इसकी गुणवत्ता है विशालता
इसी तरह ईश्वर द्वारा जिस किसी सत्ता की रचना हुई. उन सभी के अन्दर उनका अपना अपना निज गुण मौजुद है।
वैसे तो स्थूल सूक्ष्म जो कुछ इस सृष्टि में विद्यमान है. वह सबकुछ ईश्वर द्वारा ही रचा गया है। परन्तु उनकी समस्त रचनाओं में जो सबसे सुन्दर रचना है : वह है मनुष्य।
मनुष्य की रचना के साथ. ईश्वर ने उसके अन्दर इतने गुणों का समावेश किया है कि अगर वह चाहे तो अपने जीवन काल में. अपने गुणों के आधार पर ईश्वर तुल्य हो सकता है।
स्वर्ण चाहे कितना बेशकीमती क्यों न हो. अगर उसे तपा कर कराशा न जाए. तो कभी भी वह आभूषण नहीं बन सकता।
इसी भांति मनुष्य जीवन में विद्यमान गुणों को. सही तरीकों से व्यवहार में न लाया जाए. तो उसका सम्पूर्ण विकास सम्भव नहीं हो पाता।
या फिर विकाश जिस दिशा में होना है नहीं हो पाता।
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