संदीपन

22 मार्च 2010

प्रभु ! कैसी प्रीत जगाई ....


अंतर के तम दूर हुए और विरह की अग्नि समाई
प्रभु ! कैसी प्रीत जगाई .....२

मन  ये  मेरा तुझे पुकारे और न कछु अब भाई
प्रभु ! कैसी प्रीत जगाई .....२
 
निश दिन तेरी बाट  निहारु कब आवोगे कन्हाई
प्रभु ! कैसी प्रीत जगाई .....२

राह में तेरी नैन बिछाये खड़ा हूँ कब आवोगे साईं
प्रभु ! कैसी प्रीत जगाई .....२ 

1 टिप्पणी:

bNayak Parajuli ने कहा…

अती प्रसँशनिय ! धन्यवाद आपको जो हमे परम प्रेममय श्री श्री ठाकुरजी कि अमृतमय वाणी और भजनोसे धन्य करती आ रही है !
भविस्यमे भि हम आप से ऐसे ही सामग्रीयो कि अपेक्ष्या कर्ते है ! एक बार फिर धन्यवाद ! जयगुरु !!