संदीपन

17 अग॰ 2024

धर्मकार्य

 

धर्मकार्य

धर्मकार्य का अर्थ है वही करना-- जिससे तुम्हारा और तुम्हारे पारिपर्श्विक का जीवनयश और वृद्धि क्रमवर्द्धन से वर्द्धित हो ;-- सोचसमझदेखसुनकर-- वही बोलो,-- और आचरण में उसका ही अनुष्ठान करो,-- देखोगी-- भय और अशुभ से कितना त्राण पाती हो।

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

श्री श्री ठाकुर की वाणी का आशय जैसा मैंने समझा :- 

धर्मकार्य का अर्थ है वह कार्य करना, जिससे न केवल आपका व्यक्तिगत जीवन सुधरे, बल्कि आपके आस-पास के लोगों और समाज का भी कल्याण हो। धर्म का असली अर्थ केवल धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करना नहीं है, बल्कि इसका संबंध जीवन के हर पहलू से है। इसका उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, बल्कि समस्त जीव-जगत का कल्याण है।

यहाँ इस विचार को और अधिक विस्तार से समझा जा सकता है:

1. स्वयं और समाज की उन्नति (Self and Societal Growth):

धर्मकार्य का पहला और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके द्वारा आपका जीवन और आपके पारिपर्श्विक (परिवेश) का जीवन भी उन्नत होना चाहिए। इसका अर्थ है कि कोई भी कार्य जो आप करते हैं, वह आपके जीवन को और अधिक मूल्यवान बनाए, आपके व्यक्तित्व को संवारें, और आपके आसपास के लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाए। जब आप सही मार्ग पर चलते हैं, तो आप न केवल स्वयं के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन जाते हैं।

2. सोच-समझकर कार्य करना (Thoughtful Actions):

धर्मकार्य का दूसरा पहलू यह है कि आपको कोई भी निर्णय सोच-समझकर लेना चाहिए। केवल भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि आपकी सोच, समझ, और अनुभव के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। जब आप सोच-समझकर काम करते हैं, तो गलतियों की संभावना कम होती है और आप सही दिशा में आगे बढ़ते हैं। यह जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है, चाहे वह आपके व्यक्तिगत संबंध हों, पेशेवर जीवन हो, या समाज के प्रति आपकी जिम्मेदारियाँ।

3. सुनना और देखना (Listening and Observing):

धर्मकार्य का एक महत्वपूर्ण तत्व यह भी है कि आपको दूसरों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए और उनकी स्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह आपको सही निर्णय लेने में मदद करता है। इसके साथ ही, आपको अपने आसपास की घटनाओं को भी ध्यान से देखना चाहिए। देखना केवल अपनी आँखों से ही नहीं, बल्कि अपने दिल और दिमाग से भी देखना है। इससे आप समझ सकते हैं कि कौन सी चीजें सही हैं और कौन सी गलत।

4. सही बोलना और सही करना (Speaking and Acting Rightly):

धर्मकार्य का अर्थ यह भी है कि आप जो बोलें, वह सत्य और उचित हो। बोलने से पहले सोचें कि आपका कहा गया शब्द किसी को चोट न पहुंचाए। यदि आप सोच-समझकर, देख-सुनकर बोलेंगे, तो आपके शब्द दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। इसी तरह, आपका आचरण भी ऐसा होना चाहिए कि वह आपके शब्दों का समर्थन करे। केवल बोलने से कुछ नहीं होता, आपका आचरण भी वैसा ही होना चाहिए। जब आप अपने शब्दों और कर्मों में सामंजस्य स्थापित करते हैं, तो आप एक सच्चे धर्माचारी बन जाते हैं।

5. भय और अशुभ से मुक्ति (Freedom from Fear and Inauspiciousness):

जब आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो आपके जीवन से भय और अशुभ दूर हो जाते हैं। धर्मकार्य का यह परिणाम है कि आपका मन शांत और स्थिर रहता है। आप जानते हैं कि आपने जो भी किया, वह सही और उचित है, इसलिए आपको किसी भी प्रकार के नकारात्मक परिणामों का डर नहीं रहता। इस प्रकार, आप जीवन में हर स्थिति का सामना धैर्य और साहस के साथ कर सकते हैं।

6. मूल्यों और नैतिकता का पालन (Adherence to Values and Ethics):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू है मूल्यों और नैतिकता का पालन करना। जीवन में अनेक परिस्थितियाँ आएंगी जहाँ आपके सिद्धांतों की परीक्षा होगी। उस समय आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपका कार्य आपके मूल्यों के अनुसार ही हो। ईमानदारी, सच्चाई, सहानुभूति, और न्याय जैसे मूल्यों का पालन आपको धर्म के पथ पर बनाए रखता है।

7. समाज के प्रति जिम्मेदारी (Responsibility towards Society):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें। केवल अपने लिए जीना धर्म नहीं है, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी कुछ करना धर्म का हिस्सा है। आपके कार्यों से समाज में सकारात्मक बदलाव आना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी की मदद कर सकते हैं, तो आपको वह करना चाहिए। अगर आप अपने कार्यों के माध्यम से समाज की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, तो वह भी धर्मकार्य का हिस्सा है।

8. आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति (Self-Realization and Inner Peace):

धर्मकार्य का अंतिम और महत्वपूर्ण उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति प्राप्त करना है। जब आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो आप स्वयं को बेहतर समझने लगते हैं। आप अपने जीवन के उद्देश्य को समझते हैं और उसके अनुसार कार्य करने लगते हैं। इससे आपको आंतरिक शांति मिलती है और आपका जीवन अधिक सार्थक बनता है।

9. धर्मकार्य में समर्पण (Dedication in Righteous Actions):

धर्मकार्य के लिए समर्पण आवश्यक है। आपको अपने कार्यों में पूरी ईमानदारी और लगन से जुटना चाहिए। आधे-अधूरे मन से किए गए कार्य में सफलता की संभावना कम होती है। लेकिन जब आप पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ धर्मकार्य करते हैं, तो आप हर परिस्थिति में सफल होते हैं।

10. प्रेरणा का स्रोत (Source of Inspiration):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आपका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। जब आप सही कार्य करते हैं, तो लोग आपसे प्रेरणा लेते हैं और वे भी धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं। इस प्रकार, आप न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

निष्कर्ष:

धर्मकार्य का अर्थ केवल धार्मिक कार्यों का पालन करना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है एक ऐसा जीवन जीना जो न केवल आपको, बल्कि आपके आसपास के लोगों को भी उन्नति की ओर ले जाए। यह एक समग्र दृष्टिकोण है, जिसमें विचार, शब्द, और कर्म तीनों का समन्वय आवश्यक है। जब आप सोच-समझकर, देख-सुनकर, सही बोलते हैं और उसी के अनुसार आचरण करते हैं, तो आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इस मार्ग पर चलने से आपको भय और अशुभ से मुक्ति मिलती है और आपका जीवन शांति और संतोष से भर जाता है।

पुष्पा बजाज, शिलोंग .

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