संदीपन

6 मार्च 2010

तृष्णा का एकांत निर्वाण- महाचेतनसम्मुत्थान !

किसी जिज्ञासु ने प्रश्न किया  : ठाकुर की दीक्षा क्यों लेनी चाहिए ?
अरे भई आप चाहे जो हों न ! ठाकुर की दीक्षा तो हमें लेनी ही चाहिए. दीक्षा का मतलब श्री श्री ठाकुर ने कहा है दक्षता  अर्थात efficiensy .

हम आप सभी जानते है की:
  • प्रत्येक आदमी को हिंसा नहीं करनी चाहिए 
  • प्रत्येक आदमी को प्राणियों पर दया  करनी चाहिए
  • प्रत्येक आदमी को मान वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए
  • प्रत्येक आदमी को माता पिता की सेवा  करनी चाहिए
  • प्रत्येक आदमी को सदाचार का पालन  करना  चाहिए
  • प्रत्येक आदमी को सद्मार्ग पर चलना  चाहिए 
यह बात सभी  जानते हैं . कोई नई  बात नहीं है . इतना ही नहीं हम सभी यह भी जानते है की इस राह पर चलकर  ही आदमी आदमी के बीच की भ्रान्ति दूर होगी . घर घर में शांति होगी .
फिर कोई तो ऐसी बात है की हम इस राह पर चल नहीं पाते ?
श्री श्री ठाकुर ने कहा है : 
"सत्ता सच्चिदानंदमय असत्निरोधी स्वतः ही
सच्चिदानंद   का परिपोषक जो है वही है धर्म
धर्म मूर्त होता है आदर्श में
आदर्श में दीक्षा लाती है अनुराग
अनुराग लता है वृत्ति नियंत्रण
वृत्ति नियंत्रण लाता है धृति
धृति लाती है सहानुभूति
सहानुभूति लाती है संहति
संहति लाती है शक्ति
शक्ति लाती है सम्बर्धना
और, वह धृति लाती है प्रणिधान
प्रणिधान से ही आती है समाधी
और समाधी से ही आता है कैवल्य -
तृष्णा का एकांत निर्वाण-
महाचेतनसम्मुत्थान !"
 हमारी  सत्ता अर्थात हमारी आत्मा बेशक  सच्चिदानंदमय  है पर हमारी आत्मा का जो धारक हमारा यह शरीर है उसका जनम तो तृष्णा से ही हुआ है.

                              

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