संदीपन

13 फ़र॰ 2010

विषम घड़ी


प्रश्न : हर तरफ़ बीमारी! कभी बम  ब्लास्ट ! कभी स्वाईन फ्लू ! कभी कुछ ! कही बाढ़ ! कहीं सुखा ! कही भूकंप ! हम कहते है मनुष्य जाति  इस्वर का सबसे बड़ा वरदान है तो आज उसकी यह दुर्गति क्यों है ? और इस दुर्गति को इश्वर कैसे देखे जा रहा है ?उत्तर : बिल्कुल नही !
इश्वर के राज्य में कही भी कही अनावृति या अतिवृति  है ही नही।
इश्वर के समस्त कार्य एक सिस्टम के अर्न्तगत होते है।
हमारे द्वारा जब उन सिस्टम का अतिक्रमण होता है तभी उनके सिस्टम में परिवर्तन होता है और ये प्राकृतिक आपदाये आती  है।
प्रश्न : इसका क्या उपाय है ? उपाय है न ! अगर इन्हें दूर करना है तो आपको और हमको उनके बनाये हुए सिस्टम में फ़िर से जुड़ना होगा।
इस सिस्टम को फ़िर से लागु करने एवं अपनी धरती को फिरसे हर आपदा विपदा से बचने तथा प्रत्येक जीव  में फिर से शान्ति और सुरक्षा का संचार करने ही तो श्री श्री ठाकुर आए है. बहुदा देखा जाता है लोग एक अजीब मानसिकता से ग्रस्त रहते हैं। बड़े बड़े पढ़े लिखे शिक्षित  व्यक्ति भी सही प्रेरक के  अभाव में कभी कभी जीवन के बड़े उद्वेश्य से वंचित रह जाते हैं।
प्रश्न : मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या  है ?
उत्तर : पूज्यपाद श्री श्री दादा ने कहा है "मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है इश्वर प्राप्ति !"
उसका यही जन्मजात एक मात्र लक्ष्य है। अपने इस लक्ष्य को भूलकर जब मनुष्य अन्य लक्ष्य को प्रार्थमिकता देता है तभी उसके जीवन में एक स्वाभाविक असमंजस्यता का प्रारम्भ हो जाता है। उसका चित अशांत रहने लगता है चलते चलते अपने जीवन मे वह उत्साह का आभाव महसूस करने लगता है । आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं पाता है। अपने नित जीवन मे वह इन बातों के कारण अन्मंना रहने लगता है। 
भाग्यशाली वे होते है जिन्हें जल्द ही सही मार्गदर्शन मिल जाता है वरना बहु तेरे तो मन की शान्ति पाने अपने परिवेश अनुसार मन की गति को सुलझाने  के बजाय और भी उलझाते ही जाते है।
जिस प्रकार इस शरीर को चलने के लिए प्राण की आवश्यकता है उसी प्रकार जीवन को चलने के लिए एक प्रेरक की आवश्यकता है। जीवन इश्वर की  सृष्टी  है इस लिए प्रत्येक मनुष्य का फ़र्ज़ है कि  अपने इस जीवन काल   में ही इश्वर  के साथ युक्त होकर चले। 
परन्तु कहने से तो नही होगा। इसके लिए जरुरत है एक ऐसे प्रेरक की जो मनुष्य को प्रत्येक परिस्थिति मे समस्त कर्म करते हुए इश्वर के साथ रहने की युक्ति बतादे।
कहावत है पुस्तक पढ़कर आदमी पुस्तक ही हो जाता है। अतः आवश्यकता है एक ऐसा जीवंत प्रेरक मिले जो हमें जीवन के प्रत्येक रास्ते पर हमे  उसी प्यार से लेकर चले ज्यो माता ले जाती है .
हम करोरों गुरु भाई और बहन अत्यन्त भाग्यशाली है कि  श्री  श्री  ठाकुर हमारे लिए श्री श्री दादा जैसे आचार्य और श्री श्री बबाई दा जैसे प्रेरक देकर गए । जिनका संग और मार्ग दर्शन हमें समस्त बाधा व्याधियों से बचा कर ले जाता है.

2 टिप्‍पणियां:

Elegant Corner ने कहा…

जिवंत आदर्श की बात ही कुछ अलग है. में ठाकुर जी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता हूँ. मुश्किल से कुछ लोंगो से चेनई में सुना था और देखा था की ठाकुर जी को पाने के बाद उनके जीवन में बहु परिवर्तन हुए.
तब से जानना चाह रहा था की देवघर जाने से क्या आपके दादा हमसे भी वैसे ही मिलेंगे जैसे वो अपने शिष्यों से मिलते है ?

vinay tiwari ने कहा…

जी हाँ श्री श्री दादा सबके साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं आप एक बार ठाकुर बाड़ी जाइये तो आपका मन प्रफुल्लित हो जायेगा आपका जीवन धन्य हो जायेगा ।