संदीपन

13 फ़र॰ 2010

अभाव को कैसे दूर भगाए?

आज हम देश में अभाव अभियोग की बाते करते हैं पर अभाव अभियोग घटने के बजाये दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहें हैं। इस विषय में श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी ने कहा है :  

दुःख भी एक प्रकार का भाव है सुख भी एक प्रकार का भाव है। अभाव एवं चाह का भाव ही है दुःख।

तुम दुनिया के लिए हजार करने पर भी दुःख को दूर नहीं कर सकते। जब तक तुम अंदर से उस अभाव के भाव को निकाल नहीं देते।
मैं जानता हूँ मनुष्य का दुःख कहाँ है और उस दुःख का निवारण जिससे होता है वही करता जा रहा हूँ। यह मेरा कोई शौक नहीं है। बल्कि इसमे मेरा जीवन है। इससे बढ़कर कोई दूसरा रचनात्मक कार्य है यह मैं नहीं जानता।
आजकल मनुष्य दुर्दशाग्रस्त हो गया है। संयम किसे कहते हैं आत्म नियंत्रण क्या चीज है नहीं जानता है। इसीलिए जीवन संग्राम में पग पग पर पीछे हटता जा रहा है
इसी लिए दीक्षा की बातें करता हूँ यजन याजन इस्त्वृति की चर्चा करता हूँ।
एक आदर्स की पताका के नीचे दीक्षा के द्वारा जितने लोग जुटेंगे पारस्परिकता उनमे उतनी ही बढेगी
इसी तरीके से विछिन्न मनुष्य श्रृंखला बध हो उठेंगे हर व्यक्ति हर व्यक्ति के लिए सोचेगा उस समय रिलीफ सेंटर खोलना न पड़ेगा हर व्यक्ति हर व्यक्ति के एक रिलीफ़ सेंटर हो उठेगा। 

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