संदीपन

12 फ़र॰ 2010

सत्य घटना

13 मार्च 2003 को सत्संग के आचार्य परम पूज्यपाद श्री श्री दादा के प्रेरणानुसार पूरे भारतवर्ष में श्री श्री ठाकुर के जितने भी श्री मन्दिर एवं केन्द्र हैं जिनकी संख्या तकरीबन 8000 के लगभग है इन सभी जगह प्रति केन्द्र 100 दीक्षा का दायित्व सौंपा गया। पूज्यपाद दादा के आशिर्वाद से ऐसी भाव सृष्टि हुई कि रात होते होते 8.00000 दीक्षा के स्थान पर लगभग 13.00000 दीक्षा पूर्ण हुई।कितने लोंगो की कैसी कैसी अनुभूति रही होगी इसका आख्यान करने का सामथर्य किसमें है।
लेकिन उस दिन अपर आसाम के नामरूप गांव के श्री श्री ठाकुर के अनन्य प्रेमी अतुल बोरा के जीवन में एक ऐसी अपूर्व घटना घटित हुई जिसे सुनकर पूज्यवर दादा और बबाई दा के प्रति उनके हर अनुयायियों का ह्दय अपार श्रद्धा आर प्रेम से भर उठा।
90 वर्षीय अतुल बोरा श्री श्री ठाकुर के ऋत्विक एवं नामरूप सत्संग के जाने माने कर्मी हैं अपने जीवन के एक एक क्षण को इन्होंने श्री श्री ठाकुर के नाम से संजोया और उनके आदेश के पालन में प्राणपन्न से तत्पर रहे।संसार ने उनको चाहे जो कहा लेकिन उनका ह्दय साक्षी था कि जगनियन्ता स्वयं श्री श्री ठाकुर के रूप में जगत के कल्याण हेतु पूनः जीवन धारण कर धर्म की वास्तविक परिभाषा जीकर दिखाने अवतरित हुए हैं।अपने अब तक के जीवन में अतुल बोरा ने हजारों लोंगो को सत्नाम की दीक्षा दी पिछले दस सालों से मोतियाबिन्द के की तकलीफ से उन्हें अपार कष्ट हो रहा था।अधिक ऊम्र. दुर्बलता व अन्य बीमारियों के कारण उनकी आखों का उपचार करने कोई डाक्टर तैयार नहीं होता।कई बार शंकर नेत्रालय व अन्य संस्थानों में भी दिखाया गया पर सभी जगह डाक्टरों का यही कहना था कि मोतियाबिन्द के अलावा इनकी आंखों में और भी कुछ ऐसे विकार हैं जिससे आपरेशन करने का मतलब ही है आंखों की रौशनी को पूर्णतः खो देना।
13 अप्रेल को घटना कुछ इस प्रकार हुई अतुल दा की तबियत कहीं से ठीक नहीं थी उन्हें पूज्यवर बबाई दा का आदेश मिला कि नामरूप के दीक्षा कार्यक्रम में उनके माध्यम से ही सभी दीक्षा हों।अतुल दा और अन्य कार्यकर्ता आश्चर्यचकित कि यह कैसे सम्भव है? क्योंकि वह तो एक घंटा भी ठीक से बैठ नहीं पाते तो 100 दीक्षा के लिए पूरे दिन कैसे बैठे रह सकते हैं?
लेकिन आदेश तो आदेश है। अपने आचार्य की इच्छा को पूर्ण करने वे अपने शरीर की अस्वस्था को भूल गए और ऋत्विक की पोशाक पहन दीक्षा के लिए नियत स्थान पर पहुंच गए।दीक्षा कार्यक्रम आरम्भ हुआ तकरीबन 1र्520 दीक्षा के बाद ही अतुल दा की आंखों में अचानक असहनीय पीड़ा हुई और उनकी आंखों के आगे अन्धेरा हो गया उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन अधीर हुए बिना वे दीक्षा मंत्र पढ़ते रहे क्योंकि इतने वर्षों से दीक्षा देते देते उन्हें सब याद तो था ही।मन थोड़ा अधिर हुआ तो उन्होंने संयम रखते हुए अन्दर ही अन्दर अपने ठाकुर से प्रार्थना की : “हे ठाकुर! यह आंख तो जाने ही वाली थी पर आपकी कैसी असीम दया है कि आंख के जाते जाते भी आपने कुछ सत्कार्य करवा लिया और वे शान्तभाव से दीक्षा देते रहे।इन लोंगो की दीक्षा जैसे पूर्ण हुई।वे अपने परीचितों को पुकार कर बताने ही वाले थे कि उनकी आंखों की रौशनी चली गई है कि बाहर से आवाज आई : अतुल दा! 10 आदमी दीक्षा के लिए और तैयार हैं अन्दर भेज दें!
अतुल दा ने अपने इष्ट की इच्छा जान मौन रहना ही उचित समझा और दीक्षा कार्यक्रम आरम्भ होगया।इसी प्रकार 45 के उपर दीक्षा हो गई और जब दीक्षा के लिए अगला दल आया तो दीक्षा देते देते ही अचानक अतुल दा को लगा जैसे आंखों के सामने कोई दिव्य ज्योति जल उठी हो और उन्हें बिना किसी कष्ट के जैसे बालक की आंखों में रौशनी होती है वैसे ही दिखाई देने लगा।
यह है इष्ट के प्रति भक्ति और इष्ट की असीम दया।
निवारण कौन कर सकता है जो कारण जानता है जैसे एक डाक्टर अपने रोगी की अवस्था एक्सरे देखकर जान लेता है कि रोगी को क्या बीमारी है और उसका क्या इलाज है अब रोगी के उपर निर्भर है वह श्रद्धा विश्वास से इलाज करवाता है तो जरूर अच्छा हो जाता है।उसी प्रकार पूज्यवर दादा बबाई दा के सामीप्य जो कोई जिस भाव से भी जाता है वे बिना कुछ बताए उसके जीवन के हर रहस्य को जान लेते हैं।पर जो उनसे युक्त होता है उनके आदेश में रहता है उसे अपनी चिन्ता नहीं करनी होती।इष्ट आदेश का पालन करते करते उसके जीवन की तमाम आवश्यकताएं शांत होने लग जाती हैं ओर यह सब प्रकृतगत होता है।
                                        सत्संग

1 टिप्पणी:

saryu shaw ने कहा…

सभी गुरुभाई एवं बहनों को जय गुरु
मेरे ऊपर घटित एक घटना जो १९८३ \१९८४ का है मै कभी कभी लोटरी का टिकेट एक रूपए कटा लेता था दिख्छा लिए करीब ५ वर्स हुआ था ५० रुपेया लोटरी में मीला मैंने अपने भैया से कहा (जो की अभी ऋतिक है श्री जमुना प्रसाद साव )उसदिन दीघा मंदिर का उद्घाटन था भैया को वही जाना था उन्होंने कहा की जाओ ठाकुर जी का प्रणामी लगा दो मन में बड़ा कष्ट हुआ की कभी फसता नहीं है आज फसा भी तो भैया ने प्रणामी लगाने कह दिया | चलो ठीक है जैसी उनकी इच्छा ,मै पोस्टाफिस से साइकल से प्रणामी लगा कर आही रहा था की सामने से बस ने ऐसा अक्सिडेंट किया की मै साइकल के साथ बस के निचे चला गया .साइकल तो चूर चूर हो ही गया लोग जो की वहा खड़े थे उनलोगों ने कहा की मै मर ही गया हु फिर कुछ लोगो ने कहा की नहीं लगता है पैर टूट गया है मुझे महसूस हो रहा था की मै सचमुच मर कर सब को देख रहा हु लेकिन मै जिन्दा था मुझे एक खरोच तक नहीं आया था मैंने जोर से चिला कर लोगो से कहा मेरा पैर भी ठीक है ओउर मै जिन्दा भी हु |मै ज्योतिष पर सुरु से विस्वास करता हु मैंने जयोतोसियो से जा कर मीला उनलोगों ने कहा आपके ऊपर मिरतुयोग चलरहा है आप सावधान रहिएगा मैंने कहा मैंने ५० रुपिया देकर रक्छा कवच ख़रीदा है अब कुछ नहीं होगा जय गुरु
सरयू प्रसाद साव( मोबइल नंबर ०९९०३०२७१३९ )