संदीपन

1 सित॰ 2024

पुरुषोतम प्रभु -अंक १


सत्यानुसरण

"अर्थ, मान, यश, इत्यादि पाने की आशा में मुझे ठाकुर बनाकर भक्त मत बनो, सावधान होओ-- ठगे जाओगे; तुम्हारा ठाकुरत्व जागने पर कोई तुम्हारा केन्द्र भी नहीं, ठाकुर भी नहीं-- धोखा देकर धोखे में पड़ोगे।"

--श्री श्री ठाकुर

आध्यात्मिकता का मूल उद्देश्य आत्मिक उन्नति और सत्य की खोज है। इसे पाने के लिए समर्पण, निष्ठा, और ईमानदारी की आवश्यकता होती है। यदि आपकी साधना का केन्द्र सिर्फ बाहरी यश, धन, या मान-सम्मान है, तो आप असली ठाकुर, यानी ईश्वर, से दूर हो जाएंगे और धोखे में पड़ जाएंगे।

ठाकुर जी इस विचार को और गहराई से समझाते हुए कहते हैं कि यदि आपका ठाकुरत्व जागृत नहीं होता है, तो कोई भी आपका ठाकुर या ईश्वर नहीं हो सकता। इसका मतलब यह है कि ईश्वर का अनुभव और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे पहले आपको अपने भीतर के सत्य, चेतना और आत्म-साक्षात्कार को जागृत करना होगा। बिना इस आंतरिक जागरण के, आप सिर्फ बाहरी धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, या सामाजिक दिखावे में लगे रहेंगे, जो आपके लिए अंततः निरर्थक सिद्ध होंगे।

वे यह भी चेतावनी देते हैं कि यदि आपने खुद के भीतर ठाकुरत्व को जागृत नहीं किया और केवल बाहरी साधनों पर निर्भर रहे, तो आप अंततः ठगे जाएंगे। यह ठगे जाना सिर्फ बाहरी मायनों में नहीं, बल्कि आत्मिक स्तर पर भी होगा, जहां आप सही मार्ग से भटक सकते हैं और आपके लिए वास्तविक ईश्वर का अनुभव और उनका साक्षात्कार संभव नहीं होगा।

इस प्रकार, ठाकुर जी की ये पंक्तियाँ साधक को इस बात की चेतावनी देती हैं कि वे अपनी भक्ति और साधना को सच्चे आत्म-चेतना और समर्पण से करें, न कि सिर्फ सांसारिक लाभ की आकांक्षा में। यह संदेश हमें यह भी सिखाता है कि आध्यात्मिक यात्रा में ईमानदारी, सच्चाई, और आंतरिक जागरण का महत्व कितना अनिवार्य है। केवल बाहरी धार्मिक कृत्यों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती, बल्कि इसके लिए आत्म-साक्षात्कार और आत्म-समर्पण की आवश्यकता होती है।

17 अग॰ 2024

धर्मकार्य

 

धर्मकार्य

धर्मकार्य का अर्थ है वही करना-- जिससे तुम्हारा और तुम्हारे पारिपर्श्विक का जीवनयश और वृद्धि क्रमवर्द्धन से वर्द्धित हो ;-- सोचसमझदेखसुनकर-- वही बोलो,-- और आचरण में उसका ही अनुष्ठान करो,-- देखोगी-- भय और अशुभ से कितना त्राण पाती हो।

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

श्री श्री ठाकुर की वाणी का आशय जैसा मैंने समझा :- 

धर्मकार्य का अर्थ है वह कार्य करना, जिससे न केवल आपका व्यक्तिगत जीवन सुधरे, बल्कि आपके आस-पास के लोगों और समाज का भी कल्याण हो। धर्म का असली अर्थ केवल धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करना नहीं है, बल्कि इसका संबंध जीवन के हर पहलू से है। इसका उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, बल्कि समस्त जीव-जगत का कल्याण है।

यहाँ इस विचार को और अधिक विस्तार से समझा जा सकता है:

1. स्वयं और समाज की उन्नति (Self and Societal Growth):

धर्मकार्य का पहला और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके द्वारा आपका जीवन और आपके पारिपर्श्विक (परिवेश) का जीवन भी उन्नत होना चाहिए। इसका अर्थ है कि कोई भी कार्य जो आप करते हैं, वह आपके जीवन को और अधिक मूल्यवान बनाए, आपके व्यक्तित्व को संवारें, और आपके आसपास के लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाए। जब आप सही मार्ग पर चलते हैं, तो आप न केवल स्वयं के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन जाते हैं।

2. सोच-समझकर कार्य करना (Thoughtful Actions):

धर्मकार्य का दूसरा पहलू यह है कि आपको कोई भी निर्णय सोच-समझकर लेना चाहिए। केवल भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि आपकी सोच, समझ, और अनुभव के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। जब आप सोच-समझकर काम करते हैं, तो गलतियों की संभावना कम होती है और आप सही दिशा में आगे बढ़ते हैं। यह जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है, चाहे वह आपके व्यक्तिगत संबंध हों, पेशेवर जीवन हो, या समाज के प्रति आपकी जिम्मेदारियाँ।

3. सुनना और देखना (Listening and Observing):

धर्मकार्य का एक महत्वपूर्ण तत्व यह भी है कि आपको दूसरों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए और उनकी स्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह आपको सही निर्णय लेने में मदद करता है। इसके साथ ही, आपको अपने आसपास की घटनाओं को भी ध्यान से देखना चाहिए। देखना केवल अपनी आँखों से ही नहीं, बल्कि अपने दिल और दिमाग से भी देखना है। इससे आप समझ सकते हैं कि कौन सी चीजें सही हैं और कौन सी गलत।

4. सही बोलना और सही करना (Speaking and Acting Rightly):

धर्मकार्य का अर्थ यह भी है कि आप जो बोलें, वह सत्य और उचित हो। बोलने से पहले सोचें कि आपका कहा गया शब्द किसी को चोट न पहुंचाए। यदि आप सोच-समझकर, देख-सुनकर बोलेंगे, तो आपके शब्द दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। इसी तरह, आपका आचरण भी ऐसा होना चाहिए कि वह आपके शब्दों का समर्थन करे। केवल बोलने से कुछ नहीं होता, आपका आचरण भी वैसा ही होना चाहिए। जब आप अपने शब्दों और कर्मों में सामंजस्य स्थापित करते हैं, तो आप एक सच्चे धर्माचारी बन जाते हैं।

5. भय और अशुभ से मुक्ति (Freedom from Fear and Inauspiciousness):

जब आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो आपके जीवन से भय और अशुभ दूर हो जाते हैं। धर्मकार्य का यह परिणाम है कि आपका मन शांत और स्थिर रहता है। आप जानते हैं कि आपने जो भी किया, वह सही और उचित है, इसलिए आपको किसी भी प्रकार के नकारात्मक परिणामों का डर नहीं रहता। इस प्रकार, आप जीवन में हर स्थिति का सामना धैर्य और साहस के साथ कर सकते हैं।

6. मूल्यों और नैतिकता का पालन (Adherence to Values and Ethics):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू है मूल्यों और नैतिकता का पालन करना। जीवन में अनेक परिस्थितियाँ आएंगी जहाँ आपके सिद्धांतों की परीक्षा होगी। उस समय आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपका कार्य आपके मूल्यों के अनुसार ही हो। ईमानदारी, सच्चाई, सहानुभूति, और न्याय जैसे मूल्यों का पालन आपको धर्म के पथ पर बनाए रखता है।

7. समाज के प्रति जिम्मेदारी (Responsibility towards Society):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें। केवल अपने लिए जीना धर्म नहीं है, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी कुछ करना धर्म का हिस्सा है। आपके कार्यों से समाज में सकारात्मक बदलाव आना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी की मदद कर सकते हैं, तो आपको वह करना चाहिए। अगर आप अपने कार्यों के माध्यम से समाज की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, तो वह भी धर्मकार्य का हिस्सा है।

8. आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति (Self-Realization and Inner Peace):

धर्मकार्य का अंतिम और महत्वपूर्ण उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति प्राप्त करना है। जब आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो आप स्वयं को बेहतर समझने लगते हैं। आप अपने जीवन के उद्देश्य को समझते हैं और उसके अनुसार कार्य करने लगते हैं। इससे आपको आंतरिक शांति मिलती है और आपका जीवन अधिक सार्थक बनता है।

9. धर्मकार्य में समर्पण (Dedication in Righteous Actions):

धर्मकार्य के लिए समर्पण आवश्यक है। आपको अपने कार्यों में पूरी ईमानदारी और लगन से जुटना चाहिए। आधे-अधूरे मन से किए गए कार्य में सफलता की संभावना कम होती है। लेकिन जब आप पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ धर्मकार्य करते हैं, तो आप हर परिस्थिति में सफल होते हैं।

10. प्रेरणा का स्रोत (Source of Inspiration):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आपका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। जब आप सही कार्य करते हैं, तो लोग आपसे प्रेरणा लेते हैं और वे भी धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं। इस प्रकार, आप न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

निष्कर्ष:

धर्मकार्य का अर्थ केवल धार्मिक कार्यों का पालन करना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है एक ऐसा जीवन जीना जो न केवल आपको, बल्कि आपके आसपास के लोगों को भी उन्नति की ओर ले जाए। यह एक समग्र दृष्टिकोण है, जिसमें विचार, शब्द, और कर्म तीनों का समन्वय आवश्यक है। जब आप सोच-समझकर, देख-सुनकर, सही बोलते हैं और उसी के अनुसार आचरण करते हैं, तो आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इस मार्ग पर चलने से आपको भय और अशुभ से मुक्ति मिलती है और आपका जीवन शांति और संतोष से भर जाता है।

पुष्पा बजाज, शिलोंग .

8 अग॰ 2019

स्वामी के आदर्श च्युति में ही स्वामी वास्तविक रूप में पतित होते हैं :- और, स्वामी के पतित होने से बढ़कर स्त्री की अमर्यादा और क्या हो सकती है? ऐसे पातित्व से पतित्व का भी अपलाप होता है;- लक्ष्य में अटूट रहकर स्वामी को लक्ष्य में उठाओ. !!११६!! नारी निति (श्री श्री ठाकुर)



किसी उच्च आदर्श में युक्त हुए बिना किसी भी मनुष्य का अपने व्यक्तित्व में चारित्रिक सुदृढ़ता लाना अत्यंत कठिन है क्योकि आदर्श विहीन व्यक्ति बहुत महान हो सकता है, बुद्धिमान और धनवान हो सकता है परन्तु कई क्षेत्र में उसका आत्मबल दुर्बल साबित होता है, जिसके फलस्वरूप विपरीत परिस्थितियों में कई बार उसका आत्म संयम टूट जाता है, चुकि हर मनुष्य के जीवन में अनेकानेक असंभावनाए घेरे रहती है ऐसे समय में वह मनुष्य कई बार चारित्रिक दुर्बलता का शिकार हो जाता है. अतः श्री श्री ठाकुर की विचार धारा में नारी ही अपने पति के सर्वांगीन विकास की मुख्य आधार है, कारण चाहे जो रहे पुरुष के चारित्रिक ह्रास के साथ ही उसकी पत्नी की स्व्मार्यादा पर भी आघात पहुंचता है. इसलिए श्री श्री ठाकुर ने नारी निति के माध्यम से उपरोक्त पंक्तियों द्वारा सम्पूर्ण नारी समाज को उसका दायित्व समझा रहे हैं  कि वे स्वयं अपने जीवन के वास्तविक प्रयोजन को समझें अपने लक्ष्य को जानें और पूर्ण निष्ठा द्वारा उनका अनुसरण करें फिर अपने उच्च चरित्र व सदव्यव्हार द्वारा अपने स्वामी को निरंतर उस लक्ष्य में उठती रहें.
इसके लिए सबसे पहले यह जानने की परम आवश्यकता है कि वह लक्ष्य क्या है ?
कोई भी मनुष्य अपने जीवन में चाहे जितनी ही सामाजिक, आर्थिक, भौतिक उन्नति करले तब भी उसका अंतिम लक्ष्य इश्वर प्राप्ति ही है, इस लक्ष्य के अभाव में मनुष्य की प्रगति एक समय पर आकर विछिन्न साबित होती है, इश्वर प्राप्ति का सही अर्थ है अपनी आत्म सत्ता में उस परम सत्ता का प्रति क्षण बोध रहना, उस बोध द्वारा ही द्वेत भाव का अभाव हो सकता है.
उच्च आदर्श को अपने जीवन में स्थापित करके ही मनुष्य चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अपने चरित्रबल को उच्च मर्यादित व अटूट रख सकता है. क्योकि आदर्श हीन जीवन बिना पतवार की नाव की तरह होता है.
आदर्श भी कौन ? जो सम्पूर्ण प्राणिमात्र के मंगल करी व परम सहिष्णु हों, विश्व ब्रह्माण्ड की शक्ति जिनमें चलायमान हो और हमारे सामने प्रत्यक्ष हों. क्योंकि जिवंत आदर्श पाकर ही मनुष्य जिव से शिव बन सकता है :


अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली, उन गुरु (आदर्श) को नमस्कार ।
नारी शक्ति महान शक्ति है. कोई भी नारी अगर अपने नारीत्व को जागृत करती है तो उसकी क्षमता सामान्य नहीं है वह चाहे पढ़ी लिखी हो या कम पढ़ी लिखी उसका चारित्रिक बल ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है, अपने चारित्रिक बल के आधार पर वह स्वयं अपने स्वामी के चरित्र की रक्षा करने में सर्व समर्थ है.इसके लिए नारी को स्वयं उच्च आदर्श में युक्त रहकर अपने स्वामी को भी उस महान लक्ष्य में अवस्थित करने का प्राणपण से चेष्टा करना चाहिए.


-पुष्पा बजाज 

20 जून 2018

। । परमानन्द परमानन्द । ।



 

।। सांझ सवेरे मैं पुकारू।।

 

श्वास श्वास से मैं पुकारू केवल तेरो नाम प्रभु।

केवल तेरो नाम प्रभुवर केवल तेरो नाम प्रभु।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

रोम रोम में बसने वाले. जन जन के तुम प्राण हो।

जिसका न कोई संगी साथी उसके तुम भगवान हो।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

दीन दुखी के पालन हारे. सकल लोक के श्याम हो।

भटके हुए को राह दिखाते. हरते सबका त्राण हो।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

कण कण में बसने वाले. सबके प्रभु तुम राम हो।

पारब्रह्य परमेश्वर हो. प्रभु पुरूषोत्तम आप हो।।

केवल तेरो नाम प्रभु

 

।। छवि तुम्हारी अजब निराली ।।

 

दया तुम्हारी सबसे न्यारी ठाकुर सबके दाता हो।

ज्ञान ध्यान की बात नहीं पर ध्यान ध्येय और ध्याता हो।।

 

कभी लगाते मोर मुकुट तुम कभी धनुष उठाते हो।

अबकी बेर तुम ऐसे आए. भक्ति भाव जगाते हो।।

 

नैनों से बसती दया प्रेम की. प्रेम से सबही बंधाए हैं।

प््रोम का दीप ऐसा जलाया. घर घर भए उजियारे हैं।।

 

बनती बिगडी भाग्य की रेखा. दया ऐसी बरसाते हो।

दया प्रेम की लुटाकर प्रभुवर. भव से पार लगाते हो।।र्र्र्र्र्र्

 

 

 

।। कैसी ठाकुर राह दिखाई ।।

 

कैसी ठाकुर राह दिखाई

पडी भंवर में नैया पडी भंवर में नैया पार लगाई।

 

समता आई ममता पाई घर घर में सुख शान्ति छाई।

कैसी प्रभु जी तुने कैसी प्रभु जी तुने ज्योत जगाई।।

 

शान्ति के दाता भाग्य विधाता और नहीं अब कुछ भी भाता।

तेरी बतिया प्रभु तेरी बतिया प्रभु मेरे मन भाई।।

 

सबके मन में आशा भरते सबही अमंगल दूर कर देते।

जन जन पुकारे तुझे हे जग के सांई।।

 

तेरी दया से जग हरसाता दीप किसी का बुझ नहीं पाता।

तेरे रज से प्रभु तेरे रज से प्रभु धरा मुसकाई।।

 

।। ठाकुर की महिमा अपरम्पार।।

 

ठाकुर की महिमा अपरम्पार ठाकुर की जयजयकार करो।

ठाकुर हैं जग आधार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो

 

ठाकुर ने सतनाम जगाया सतनाम का ऐसा मर्म बताया।

नाम से होगा बेडा पार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो

 

जन जन में सतनाम जगाते सबकी विपदा दूर भगाते।

नाम ठसे करते उद्धार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो।

 

सब मिलकर ठाकुर को ध्याओ सतनाम की धून जगाओ।

नाम से करलो नैया पार ठाकुर की जय जयकार करो

ठाकुर की जयजयकार करो।

 

।। मीठी वाणी रे।।

 

मीठी वाणी रे ठाकुर जी की मीठी वाणी रे।

सब मिल बोलो रे भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

जग उद्धारक  हैं ठाकुर जी जग के पालक हैं।

सबके प्रतिपालक हैं भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

राह दिखाते हैं वे सबकी बिगडी बनाते हैं।

वे सबको पार लगाते हैं भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

छवि निराली है अद्भूत बात निराली है।

करते रखवाली हैं भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

द्वार पर आओ रे ठाकुर की शरण में आओ रे

प्रभु के चरण पखारो रे भक्तजन मिल सब बोलो रे।

 

आए कुल स्वामी रे सबके हितकामी रे।

हैं निष्कामी रे भक्तजन मिल सब बोलो रे।र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

 

।। करलो प्रणाम ठाकुर।।

 

करलो प्रणाम ठाकुर जग के आधार हैं

उनकी दया से होता सबका बेडा पार है

 

नाम की महिमा सबमें जगाते  नाम से सारी बात बनाते।

बडी अनोखी लीला रचाते जल तल नभ में कोई समझ नहीं पाते।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

 

ऋद्धि सिद्धि सब द्वार तिहारे हाथ जोड कर तोहे पुकारे।

सब देवों का आपमें वास है भक्तों के वश में रहते आप हैं।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

 

सबकी नैया पार लगैया रूप तिहारा जैसे कृष्ण कन्हैया।

भक्त खडे मिल करते पुकार हैं तोरी दया की बस एक चाह है।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

 

ठाकुर नाम का भर भर प्याला जो पीवे हो जाए निहाला।

पुरूषोत्तम प्रभु दीन दयाला शरण में आए होए निहाला।

सबके स्वामी वे तो सबके दयाल हैं

र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

।। ठाकुर जी की बात ।।

 

ठाकुर जी की बात ठाकुर जी की बात सारे जग को सुहाती है।

सबका दुखडा मिटाती है ठाकुर जी की बात

 

आर्त दुखी जन सारे आए तिहारे द्वारे दया की आस लिए।

द्वार से खाली हाथ कोई नहीं जाता सबकी सुद्ध लिए।।

पे्रम से उनकी प्रेम से उनकी जो ज्योत जगाते हैं।

उनका दुख वे मिटाते हैं ठाकुर जी की बात।।

 

सुन प्रेम की वाणी आए जो संत ज्ञानी सबको साथ लिए।

सत्य जगाने को सद्भाव जगाने को जतन सब आप किए।।

भक्ति भाव के साथ भक्ति भाव के साथ जो दर पर आते हैं।

उनकी आस पुराते हैं ठाकुर जी की बात।।

 

सभी को बचाने को सभी को बढाने को सतनाम जगाते हैं।

सतनाम की महिमा सतनाम की गरिमा सबको बताते हैं।।

दीक्षा के माध्यम से  दीक्षा के माध्यम से जग सुन्दर बनाते हैं।

सतनाम दिलाते हैं ठाकुर जी की बात।।

र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

 

 

।। जगदीश्वर तेरे नाथ।।

 

जगदीश्वर हैं प्रभु पुरूषोत्तम हरि हरि बोल

हरि हरि बोल बन्दे  हरि हरि बोल

 

पुरूषोत्तम को जो ध्यावे उसका जनम सफल हो जावे।

उसके बन जाते सब काम बन्दे हरि हरि बोल।।

 

पुरूषोत्तम के दर जो आवे उसके दोष मिट जावे सारे।

उसके कर्म होते निष्काम बन्दे बोल हरि हरि।।

 

सतनाम की महिमा जो गावे भाव अनुठा पावे।

मिलता श्री चरणों में स्थान बन्दे बोल हरि हरि।।

र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्

 

।।शान्ति के दाता परम विधाता।।

 

शान्ति के दाता परम विधाता महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।

ले लेना ठाकुर ले लेना शरण में मुझकोे ले लेना।।

 

सबके काज संवारते सबका मंगल करते हो।

सब जन मिल पुकारते विपदा सबकी हरते हो।।

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

 

स्वरूप तुम्हारा अति सुन्दर मन भावन अति प्यारा है।

जो कोई दर पर आया तेरे करूणा तेरी पाया है।

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

 

श्वास श्वास में तेरा नाम प्रभु मुझमेें समा जाए।

ऐसी दया करो प्रभु सतनाम की शक्ति जग जाए।।

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

 

पुरूषोत्तम प्रभु जगपालक सृष्टि के पालनहार हो

जगतपिता जगपालक हो सृष्टि के सृजनहार हो

शीतल करते निर्मल करते।

महिमा अपरम्पार शरण में ले लेना।।

।। तोहे सुमिरकर ठाकुर।।

 

तोहे सुमिरकर ठाकुर मैं तर जाऊं

तेरे चरणों की भक्ति पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं

 

जग के आधार तुम जग के पालनहार हो।

मेरी नैया डगमग डोले तुम्ही खेवनहार हो।

तेरे चरणों में ठाकुर शरण पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं।।

 

नजर जब उठाते प्रभु करूणा बरसाते हो।

लाखों लाखों लोंगो की विपदा मिटाते हो।

तेरे चरणों में ठाकुर शक्ति पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं।।

 

जग से हारा मैं तो शरण तेरी आया हूं।

द्वार पर तेरे आकर बहुत शान्ति पाया हूं।

तेरे चरणों में ठाकुर सुख पाऊं ठाकुर मैं तर जाऊं।।

र्र्र्र्र्र्र्र्

 

 

 

।। ठाकुर तेरे दर्शन की।।

 

ठाकुर तेरे दर्शन की ठाकुर तेरे दर्शन की।

मुझे चाह अति भारी ठाकुर तेरे दर्शन की।।

ठाकुर तेरे दर्शन की

 

मैं कैसे दूर रहुं तेरी याद सताती है।

मैं जितना नाम करूं तेरी चाह बढ जाती है।।

तेरा रूप जो दिख जाए तेरा दरश जो मिल जाए।

मेरा मन ये खिल जाए।।

ठाकुर तोरे दर्शन की

 

तेरी सुन्दर वाणी को मैं जितना मनन करूं।

मन नहीं अघाता है मैं जितना जतन करूं।।

तु सामने हो मेरे तु सामने हो मेरे।

मेरा मन हरख जाए।।

ठाकुर तोरे दर्शन की

 

मेरे पास में आना प्रभु मुझे बिसर मत जाना प्रभु।

मुझे अपना बनाना प्रभु मुझे भूल न जाना प्रभु।।

तु बिसर गया मुझको गर भूल गया मुझको।

तो मैं ना सम्भल पाऊं।।

ठाकुर तोरे दर्शन की

 

।।मनवा प््राभु आए तेरे द्वार।।

 

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार. मनवा प््राभु आए तेरे द्वार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

मन की पीडा धर चरणों में. सुनेंगे बारम्बार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

जिस जीवन को दिया प््राभु ने. आए उसको सम्भाल।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

जप तप साधन कुछ भी न मांगे. मांगें केवल प्यार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

जीवन पथ को रौशन करले. मौका मिला इस बार।

मनवा प््राभु आए तेरे द्वार…

 

 

 

 

।। अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ ।।

 

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ प्रभू बार बार अभिनन्दनॐ

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ

 

प्रभू जबसे तुमको पायाॐ तब हटा तम का सायाॐ

करूं हर पल वन्दनॐ प्रभू बार बार अभिनन्दनॐ ॐ

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ

 

पूजा की विधि ना जानूं. ॐ मैं सेवा की विधि ना जानूं।

जग बना शीतल चन्दनॐ प्रभू बार बार अभिनन्दनॐ ॐ

अभिनन्दनॐ अभिनन्दनॐ

 

 

 

।।प्रभू कैसी प्रीत जगाई।।

 

अंतर के तम दूर हुए और. विरह की अग्नि समाई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

 

मन ये मेरा तुझे पुकारे और न कछु अब भाई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

 

निश दिन तेरी बाट निहारूं. कब आओगे कन्हाई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

 

नैन बिछाए कबसे खडा हूं. कब आवोगे सांई।

प्रभू कैसी प्रीत जगाई…

।।प्रभु पुरूषोत्तम।।

 

नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो

प्रभु पुरूषोत्तम अनुकुलाय आदिदेवाय नमो

नमो नमो नमो नमो

 

अनन्तरूपाय अतीन्द्रियाय अव्यक्त रूपाय नमो

अद्भुताय अधृताय अर्चिताय नमो नमो

नमो नमो नमो नमो

 

अनन्ताय आदित्याय अमृताय नमो

अव्ययाय अचिन्त्याय अव्यक्ताय नमो

नमो नमो नमो नमो

 

अनुत्तमाय अमृतपाय अधिष्ठानाय नमो

अच्युताय अनिरूद्धाय अक्षराय नमो

नमो नमो नमो नमो


।।अन्तर के अंधियारे में।।

 

अन्तर के अंधियारे में किसने

ज्योति जलाई।

तमश भरे जीवन पथ पर

सजल चांदनी छाई।।

 

जलचर नभचर सुप्त हुए हैं

निश्चेत गगन है सारा।

मौन स्वर से पुकार रहा है

अशंक अभीक अपारा।।

 

परम पुरूष के आगमन से

गगन हिंडोले खाए।

प्राणों के उनके पावन स्पर्श से

जल न जलधि समाए।।

 

विरह वेदना दूर हुई है

मही आज हरिआई।

घट घट में घनश्याम जगे हैं

चहुं ओर शांति आई।।

 

 

।।महानाद के महाशिखर पर ।।

 

महानाद के महाशिखर पर बैठो मेरो नन्दलाल।

सखीरी जाती तू किस पाल

 

महाजाल में उलझ रह्यो है मन न होय संभार।

चित्तचोर वो नन्द को लालो ले लियो सो भार।।

 

जग की माया खींच सके ना देख रह्यो मुस्काय।

तरूवर सरूवर सब मं बसोे है जग को खेवनहार।।

 

वेदकर गंगधर शशीधर नदीधर आए जगदाधार।

रैन दिवस कर उनके हवाले इहलोक से होजा पार।

 

 

।।सर्वेश्वराय सुदर्शनाय।।

 

सर्वेश्वराय सुदर्शनाय सर्वहिताय प्रभु आप।

शरण में लो आप मोहे शरण में लो आप।।

 

कृष्णाय केशवाय कारणाय प्रभु आप।

कामप्रदाय कृतागमाय कृताकृताय प्रभु आप।

 

गोहिताय गोबिन्दाय गरूड़ध्वजाय प्रभु आप।

गदाधराय गहनाय गरूतमाय प्रभु आप।।

 

माधवाय महीधराय मुकुन्दाय प्रभु आप।

महाधनाय मनोहराय महाभाग्य प्रभु आप।।

 

वासुदेवाय वारूणाय वासवानुजाय प्रभु आप।

विदारणाय विस्तराय अनुकुलाय प्रभु आप ।।

 

।।आदिकारण हे जगतारण।।

 

आदिकारण हे जगतारण ठाकुर मेरे नाथ।

मेटो भ्रम हे नाथ प्रभुॐ किस विध होऊं सनाथ।।

 

पार न पाऊं भव बंधन कोरोक न पाऊं विघात।

सांकर मेरे पग में बंधी है कैसे होऊं अदास।।

 

धधक रही है जग की ज्वाला चैन नहीं कोई भांत।

पथ तो दिखे चल नहीं पाऊं बल बुद्धि नहीं परमात।।

 

दीनबन्धु दीनों के स्वामी सगरे जगत के आधार।

जीव जगत और सर्व भुवन में और न कोई कर्तार।।

विघातः नाश सांकरः जंजीर अदासः स्वतंत्र परमातः परमात्मा

कर्तारः करतार

 

 !!परमानन्द परमानन्द!!

परमानन्द परमानन्द परमानन्द पुरूषोत्तम
शून्य हो या शून्यविज्ञ हो विश्वभावन पुरूषोत्तम
वेद हो या वेदविज्ञ ब्रह्य हो पुरूषोत्तम
अनल हक जो ध्यानी कहते आदिकारण पुरूषोत्तम
तत्व हो या तत्वविज्ञ पूर्ण हो पुरूषोत्तम
सत्य पथ पर चल सकूं जगनिवास पुरूषोत्तम
अमित अगाध हो या अनन्त असंख हो पुरूषोत्तम
विश्वव्यापी चेतना का अप्रमाण हो पुरूषोत्तम

-पुष्पा बजाज, शिलोंग.