परम प्रेममय श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र
। । पुरूषोत्तम वन्दना। ।
पुरूषोत्तम की करूं वन्दना, पुरूषोत्तम को नमन करूं।
जनम जनम मैं करूं वन्दना, जनम जनम मैं नमन करूं। ।
आदि अनादी पुरूषोत्तम प्रभु, शत् शत् तुमको नमन करूं।
हे सुख रंजन हे दुख भंजन, सादर तुमको नमन करूं। ।
अखिल लोक के पालन हारे, कोटि कोटि नमन करूं।
कण कण में प्रभु छवि तुम्हारी, प्राणों से मैं नमन करूं। ।
हे प्रभु तुम दया के सागर, महिमा कैसे वर्णन करूं।
हे पुरूषोत्तम हे सर्वोत्तम, श्वास श्वास से नमन करूं। ।
जीवन मेरा चरणों में अर्पित, सव-भाव से नमन करूं।
हर जनम रहुं तेरा पुजारी, पल पल क्षण क्षन जतन करूं। ।
हे अखिलेश्वर हे सर्वेश्वर, रोम रोम से नमन करूं।
हे पुरूषोत्तम पथ पर तोरे, जनम जनम मैं चला करूं। ।
अखंड अलौकिक रूप तुम्हारा, शोभा कैसे वर्णन करूं।
शरण में अपनी ले लो मुझको, हाथ जोड तोरे चरण पडुं। ।
-पुष्पा बजाज, शिलोंग.
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